उस्ताद जाकिर हुसैन जी को दी श्रद्धांजलि
उस्ताद जाकिर हुसैन का संगीत जगत में विशेष योगदान: डॉ. अनुपमा आर्य
‘‘कुछ कर जाने की लौ अगर तासीर में है, फिर क्या फर्क पड़ता है क्या तकदीर में है’’: डॉ. आर्य
उस्ताद जाकिर हुसैन भारतीय युवा पीढ़ी के लिए प्रेरणास्त्रोत: डॉ. शचि शुक्ला
आर्य गर्ल्ज कॉलेज, अम्बाला छावनी के संगीत विभाग द्वारा स्व. उ. जाकिर हुसैन, विश्व विख्यात तबला वादक को श्रद्धांजलि अर्पित की गई। इस अवसर पर कॉलेज की प्राचार्या डॉ. अनुपमा आर्य, कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय की कॉमर्स विभागाध्यक्ष डॉ. नीलम ढांडा श्रीमती मधु, तथा कॉलेज से डॉ. अंजु बाला, डॉ. प्रगति शर्मा, प्रो. सोनाली, डॉ. अमनदीप मक्कड़, डॉ. रेखा वासु तथा कार्यक्रम प्रभारी डॉ. शचि शुक्ला तथा डॉ. अनु वर्मा उपस्थित रहे। डॉ. शचि शुक्ला ने उ. जाकिर हुसैन जी के जीवन पर प्रकाश डालते हुए छात्राओं को बताया कि उ. जाकिर हुसैन जी का जन्म 9 मार्च, 1951 को मुम्बई में हुआ था। इनके पिता स्व. उ. अल्ला रख्खा जी भी सुप्रसिद्ध तबला वादक थे। इन्होंने तबला वादन क्षेत्र में केवल भारत में ही नहीं बल्कि विश्व भर में अपनी अलग पहचान बनाई है। उ. जाकिर हुसैन जी उत्कृष्ट तबला वादक होने के साथ-साथ एक सफल संगीतकार, संगीत निर्माता भी थे। भारतीय शास्त्रीय संगीत में तबला वादन को विश्वभर में लोकप्रिय बनाने हेतु भारत सरकार द्वारा कला के क्षेत्र में इन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण तथा 22 मार्च, 2023 को पद्मविभूषण से नवाजा गया। इन्हें 4 ग्रेमी अवार्ड््स भी प्राप्त हुए। गत् 15 दिसम्बर, 2024 को इनके आकस्मिक निधन से संगीत जगत को बहुत क्षति हुई है। इन्होंने अपना समस्त जीवन शास्त्रीय संगीत की सेवा में समर्पित किया। विदेशों में रहते हुए भी भारत तथा भारतीय संगीत से इनका प्रेम तथा भारतीय संगीत के प्रति समर्पण हमारी युवा पीढ़ी के लिए एक मिसाल है। विदेशों में रहते हुए भी हृदयतल से अपनी संस्कृति, कला तथा धरती से प्रेम रखना युवा पीढ़ी को यही सीख देता है कि अपनी मातृभूमि की सेवा करें तथा आप चाहे कोई भी कर्म करें, उसे प्यार करें जिम्मेवारी से करें, वह कर्म अवश्य ही फलीभूत होगा तथा आपको सफलता मिलेगी। डॉ. अनुपमा आर्य जी ने छात्राओं को बताया कि उ. जाकिर हुसैन जी चाहे आज हमारे बीच नहीं रहे परंतु उन्होंने संगीत जगत को तबला वादन क्षेत्र में जो योगदान दिया है और जिस कदर भारत का नाम विश्वभर में रोशन किया है उसके लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आर्य गर्ल्ज कॉलेज का संगीत विभाग तथा प्रांगण में प्रारंभ से ही संगीत कलाकारों के शुभचरण पड़ते रहे हैं। 1963 में पं. गणेश प्रसाद शर्मा (विख्यात शास्त्रीय संगीत कलाकार, सहसवान घराना) संगीत विभाग में शिक्षक पद पर आए तथा उसके बाद स्व. पं. जसराज, स्व. गिरिजा देवी, अमीर खां साहेब, लक्ष्मण कृष्ण राव पंडित, प्रदीप चटर्जी, लक्ष्मी शंकर, सतीश चन्द्र जी जैसे विख्यात कलाकार यहां के मंच पर अपनी कला प्रस्तुति के लिए आए। इस प्रकार आज भी यह विभाग संगीत के प्रचार प्रसार हेतु प्रयत्नशील है। इस अवसर पर डॉ. अनुपमा आर्य जी ने उस्ताद जाकिर हुसैन को याद करते हुए कुछ पंक्तियां कहीं ‘‘कुछ कर जाने की लौ अगर तासीर में है, फिर क्या फर्क पड़ता है क्या तकदीर में है’’। कार्यक्रम के अंत में उपस्थित अतिथि श्रमती मधु जी, रिटायर्ड आर्मी स्कूल प्राध्यापिका ने कॉलेज प्राचार्या डॉ. अनुपमा आर्य जी का उन्हें इस कार्यक्रम में आमंत्रण करने हेतु धन्यवाद किया तथा छात्राओं को अच्छा आचरण रखने, शिक्षित होने के साथ-साथ सशक्त होने की प्रेरणा दी। डॉ. नीलम जी ने भी छात्राओं को अच्छे व्यवहार संबंधित तथा अपने कार्य से प्यार करने हेतु प्रेरणा दी। आए हुए अतिथियों श्रीमती मधु जी तथा डॉ. नीलम ढांडा ने संगीत विभाग तथा डॉ. अनुपमा आर्य जी द्वारा आयोजित इस श्रद्धांजलि अवसर को सराहा तथा कहा कि महान व्यक्तियों के योगदान को हमेशा याद रखना चाहिए। उनका जन्म तथा मृत्यु दिवस उनके योगदान को याद करना इस बात का प्रतीक है कि हम उन्हें कभी भूला नहीं सकते तथा वह सदैव हमारी स्मृतियों में जीवित है।